Tuesday 22 May 2012

क्या मेरा नहीं था ......

क्यूँ चले उस राह पर जिस तरफ जाना नहीं था ...
वो गुलशन क्या मेरा नहीं था ...
क्यूँ बढे थे हाथ जाने किस सफर की तलाश में 
जिन पर मेरा हक नहीं था ...
सिलसिला क्यूँ चला था जिस राह से अनजान थे 
वो पता क्या मेरा नहीं था ...
जिंदगी क्यूँ रुसवा किया इस कदर तुमने हमे ..
क्या तुझे देना साथ नहीं था...
हम टूटकर बिखरे है किस कदर किससे कहे ..
मुख से कुछ कहना नहीं था ...
बदनामी ही पाई है हमने इस राह पर जानते हैं
और जुदा कुछ मिलना नहीं था ..
कतरे कतरे बहेंगे हर राह पर रोकें क्यूँकर भला
हाँ, संवर के शायद बहना नहीं था ....
मेरे चमन की हंसी लौटकर आएगी नहीं कभी ..
मौत ए मंजर मिलना सही था ..
अब सिला साजों से जुदा सन्नाटों का हुआ फकत
साजों खुशी से मिलना नहीं था....
मालूम , साहिल की तलाश नहीं की थी कभी ..
साहिल से तो मिलना यही था ...---विजयलक्ष्मी

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