Monday 28 May 2012


कुछ भी नहीं है प्यार ..
और प्यार ही खुदा है ..
महक एक जुदा सी ..
जिंदगी भी फना है ..
एक अहसास है किसी के होने का मुझमें..
मेरा ही है अपना.. और मेरा ही नहीं है..
मुझमे बसा है लहू सा और दिखता भी नहीं है ..
हूँ खुद से बेखबर ,क्यूँ कोई खबर नहीं है ..
बेतरतीब जिंदगी की अजीम तहजीब सा वो कहाँ कहाँ नहीं है ..
तन्हा हूँ खुद से गाफिल ,और तन्हा भी नहीं हूँ ..
खोई है मेरी दुनिया और शामिल मैं उसमे शामिल भी नहीं हूँ ..
एक अदा है ,एक अदावत है ..
एक खुशी ,एक गम ,जिंदगी का किस्सा ,बातों का मेरी हिस्सा ..
मेरी यादों का सरमाया ...
जिस बिन न कुछ भी पाया ...जुदा हों कर
क्यूँ कुछ है पाने की चाह लुटाने बाद भी सारी दुनिया ..
गली मुहल्ला सारे सरहद बन गए थे ...
हम नजरों में उनकी शहंशाह बन गए थे ..
औकात सबको मालूम ...किसकी बताए मुख से ..
ये प्यार है अजूबा कैसे भला बताएं
हाँ कैसे भला बताएं.--.... 


                                                         विजयलक्ष्मी

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