Monday 21 May 2012

वक्त का चिंतन निरंतर ...

वक्त का चिंतन निरंतर ...
स्वयं का सृजन निरंतर ..
हों गति चाहे मंथर ...
चल निरंतर चल निरंतर ...
वेग संग बहकर के तू 
उड़ा तो चलेगा जिंदगी ..
ये सोच बहाने का हक भी तो नहीं ..
ये कलाकारी है उस सृजन की ..
जिसका श्रीज व्यर्थ नहीं, नहीं कमतर ...
वक्त का चिंतन निरंतर ...
कर्म पथ विस्तृत है अहो या लघुतर द्रष्टिगत हुआ ..
चिर निरंतर प्रयास मधुरम ....
समय दृष्टि को मापता ...
सम्यक सृजन सत्ता चली साम्यता सी वेदना ..
पथ कही किस ओर तुम हों ..?
चल चलूं ,सृजन न अब मापना ...
एक तट ,जल सरस बस ....वक्त धार सा बह
वक्त का चिन्तन निरंतर ?
वक्त का चिंतन निरंतर ....
सौंदर्य औदार्य समय रेख से मिला ...
छोड़ सब उस कला पे ...जो हर कला का देवता ...
जीवन मृत्युं उस कला की दृष्टिगत सी प्रेरणा .---विजयलक्ष्मी

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