Saturday 2 June 2012

बेटी समझी बोझ क्यूँ .



बेटी समझी बोझ क्यूँ ..
बतलाना मुझको मेरे खुदा ..
गर बोझ थी जमीं पर जन्म क्यूँ रचा ..
क्यूँ बनाया मुझको तुमने ? जननी का रूप दिया क्यूँ ?
क्यूँ मेरे ही नाम अब मृत्यु नर्तन लिख दिया..
बेटी समझी बोझ क्यूँ ?
बतलाना मुझको मेरे खुदा ..
दोष दूँ किसको भला ,दहेज को या माँ बाप को
सोच कर कांपते है वो आने वाले वक्त को ..
भूखी सी हर नजर खाने को दौड़ती है ..
किसी को देह की भूख है और किसी का धन ही माई बाप है ...
इस बेरहम सी दुनिया में दोष अब किसका कहूँ ..विजयलक्ष्मी .

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