Tuesday 26 June 2012

बौने से वो पौधे .....गहरे पैठ गए हैं अब ..

बौने से वो पौधे ...., गहरे पैठ गए है अब ,
तुमने देखा ही नहीं निहार कर बहुत पुष्प खिल चुके है
सब सरकारी नौकर है बस उसी लकीर पर चलते ,..
खाती है बाड़ खेत को देखा नहीं क्या कभी गुजरते ?
जंगली हाथी का झुण्ड खेत में आ पहुंचा था ..
जाने कैसे लोग जान से मार कर शेर तक खाते है ...
घास तो खाते थे ,खेल समान का समान के खाया ...
अब जंगल की बारी है ,कहीं आग लगी ,कहीं काट जडो से जला दिया
नेता के घर जाकर उसका नेह झूला झूला दिया ..
रिश्वतखोरी अब कहते है वेतन का हिस्सा है ,
कोई पुरानी बात नहीं कल ही का किस्सा है ..
महंगाई का रोना हों गया रोज रोज की बात ,कितनी बार कहूँ
विद्यालयों के ठीक सामने मयखाने खोल दिए ..
अस्पतालों की छतों पर भी खुले है बाकी ... बोल दिए ..
सरकारी दफ्तर लैला मजनूं की दूकान ....
प्राइवेट नौकरी तन के खेलों की मांग ..जमाना खराब हों चला है
आओ तो सरकारी गल्ले की दूकान का हिसाब लगा देना
एक महीने से बंद पड़ी है ..उसकी शिकयत लिखवा देना
बाकी सब अच्छा है ,कुछ बचा नहीं अभी ..जो लिख भेजूं
फिर खत लिखोगे तो ,...बाकी किस्सा बयाँ कर दूगीं
चलो बंद करती हूँ .. बडो को प्रणाम , बच्चो को प्यार कर दूंगी ..-विजयलक्ष्मी

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