Tuesday 24 July 2012

इजहार ए इश्क कयामत न कर दे ...

क्या बयाँ जरूरी है हर बार हलफनामे का ,
समझा करो ,कभी तो चुप भी रह जाया करो .--विजयलक्ष्मी
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न हों , इजहार ए इश्क कयामत कर दे दुनिया में ,
जलजलों का ख्याल रखना भी जरूरी है जिंदगी के लिए .विजयलक्ष्मी
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मन करता है कायनात को दीवाना बना दूँ कदर..
नफरत का नाम ओ निशां ही मिट जाये दुनिया से ,

मगर इंसानी फितरत अजब सा रंग रखती है ..
मुहब्बत में नफरत को ही लिए फिरती है दुनिया में, -- विजयलक्ष्मी

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