Friday 17 August 2012

उफ्फ ! ये बिजली के बिल और नेट के किस्से ,
तन्हाई की बात और अँधेरे के किस्से ,
मुई, जब देखो चली जाती है छोडकर ,
समझती नहीं ,कितनी जिंदगी ,..
जिंदगी और मौत के बीच लटक जाती है 
अस्पतालों में ,स्कूलों में ,मेट्रो स्टेशन पर ..
रेलवे स्टेशन पर ....कभी कभी तो जंगल के बीच वीराने में ...
और बिल के तो क्या कहने ...बिजली जले न जले देना ही है ,.
कहो न कोई सरकार से कभी तो माफीनामा किया करे ...
राहत राशन पर ह

ी.., बिना राशन वालों को भी दिया करे ..
हमारी सुनती कहाँ है ..लगता है धरना देना पडेगा
अन्ना की तरह या बाबा की तरह ..
कल की बात लो ...पूरे पांच घंटे सर्वर गायब ..
स्वतंत्रता का जश्न और ....उसपे सब गायब ...
गजब ...किस्से कहानी ,फिर मेंहमानों की लम्बी लिस्ट ...
और जिंदगी की कहानी का ट्विस्ट ...
पर वो भी अच्छा है ...कभी कभी होना चाहिए ..
पता लगता है , हम कहाँ है ...
जिन्दा है या मर गए है ,
इसके लिए तो शुक्रिया कहना ही होगा..
अभी हम जी रहे है...सांसे है बकाया कहीं कहीं पर. - विजयलक्ष्मी

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