Monday 17 September 2012

ख्वाब की तसीर समझे ...?


जिंदगी तो नाम है ..
जीता हर कोई जज्बात है ,
ख्वाब जैसे भी मगर , जख्मों का अहसास है 
तो बता क्या नैन त्यागे देखना या सहेजना जज्बात को ,
हाँ पता है ...चैन निंद्रा खो गयी है रास्ता ...
फिर भला क्यूँ न ख्वाब रूह को ही बाँट दे ,
नमी के कहने भी क्या ? वो सदा चलती रही है और चलेगी आज भी ,
क्यूँ भला हों देह लालच .....उसके बिना उल्लास है ...
क्या कहूँ ..त्रिकोण ...आयत ,या बस नदी बन बह रहूँ ...
ख्वाह्शें ही ख्वाहिशे ..?अब कहाँ बाकी बची टूटकर बिखरे नहीं ...
ख्वाब की तासीर समझे ...?
तरकश नया चल ही पड़ा ....ला बता ...है बाकी कितना
रास्ता भी माप ले अब ...अब पढ़ लें" किस्सा ए उनवान" भी ..
अब देखेंना जरूर "सत्य की शव यात्रा "या बारात चढेगी
टूटे पुलों की चटकती दीवारें या बह जाना है... क्या चाहता है बोल अब ?
देखतें है अब असर हम खुद ,खुदा उतरेगा या खींचता है अब हमें
हम अँधेरा ही रहेंगे या बनेगे सूर्यरश्मि ....नापनी है खुद की जमीं...
कदमों की आहट का असर ...दिखने भी लगा है
इबारत होंगी खाक में या आसमां का सफर
समय बेल कौन सा पुष्प लिए है या बस एक कैक्टस .--विजयलक्ष्मी 

No comments:

Post a Comment