Sunday 9 September 2012

गर मौत सकूं दे तो भी बहुत..


"चलो हम फिर से मर जाते है इक बार ,
जनाजे में तुम भी दे देना एक कंधा अपना.
तमन्ना पूरी हों किसी की तो ए दोस्त ,
मेरा न सही कोई बात नहीं टूटना है धंधा अपना .
चलो शहनाई बुला लो तुम भी आज .
वक्त से इक ताल्लुकात बाकी है कहीं शायद 
लौट के आने के रास्ते मिले ही किसे हैं ,
साथ चलता है सदा हर अधूरा सा सपना .
भूल जाना या मेरी जाना मुमकिन सकूँ दे गर ,
ख्वाब पूरे हों जरूरी तो नहीं है ,गर सकूं मौत दे तो भी बहुत 
लिल्लाह बहुत है ,मेरा जीना इतना ."- विजयलक्ष्मी

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