Thursday 11 October 2012

सब कबूल उसे छोड़ कर मुझे ..

न रख तमन्ना अब कोई मुझसे ,खुद से सरोकार खत्म हों गया ,
ए जिंदगी !जा चली जा अब तो ..राह अपनी छोडकर मुझे .

टूटेंगे सही तारे मगर गिरेंगे नहीं उन्हें आदत हों चुकी टूटने की ,
चाँद ने इनकार किया चमकने से ,चल दिया छोड़ कर मुझे .

आज सियासत ने रंग दिखाने की कोशिश की थी थोड़ी सी यहाँ ,
रियासत पे लिखे नाम से सब वाकिफ थे एक छोड़ कर मुझे .

मेरी दोस्ती मंजूर न थी उसे सलाम कबूल हुआ बज्म में उसकी ,

जाने किस खौफ से वाबस्ता है ,सब कबूल उसे छोड़ कर मुझे .

चैन से चैन की खबर पूछेंगे, शाम ए ख्याल ने कहा यूँ कुछ ही ,
चटक न जाये तस्वीर सम्भाल जरा,सब है उसमे छोड़ कर मुझे .-- विजयलक्ष्मी

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