Monday 13 May 2013

मैं कर्ज क्यूँ पिता का











मुझे क्यूँ मार डाला , 
क्या हक नहीं जीने का मुझे , 
क्या जीवन सिर्फ लडको के लिए है .. माँ,
क्या मुझे इतना भी हक नहीं है  
बिता सकूं कुछ पल ममता की छाँव में ,
क्यूँ मर डालना कहते है सब लोग महज मैं लड़की हूँ ... 
मैं कर्ज क्यूँ पिता का ,
मैं दर्द क्यूँ हूँ तुम्हारा  
क्यूँ वजन हूँ भाई के कंधों का  
क्यूँ उतरन हूँ दादी की बातों का  
क्यूँ आंसूं बनी आँखों में दादा की 
ये कैसी कहानी चली  
ये कौन रीत चली 
कौन सी बही बयार .. 
सबका सबकुछ... 
नहीं बस मेरे हिस्से प्यार ..
बस मार !! मार !! मार !!
कन्या के ऊपर ही उठते है हथियार
... हाँ कन्या भ्रूण इसे मार !!.--विजयलक्ष्मी

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