Saturday 25 May 2013

वीणा कैसे टूट गयी

जरूरत की रात और चमकते जुगनुओ की दुश्मनी है शायद 
बिना बात चले जाते है और जरूरत पर मुह छिपाते हैं 
सृजन कहाँ खो गया जुगनू के संग अँधेरे में खो गया 
कालबाधित कलम टूटकर गीत गयी तभी और ..
सहमा सा सत्य साथ चल पड़ा ...
पहुचता भी कैसे भला सत्य अपनी मंजिल
राह में पकड़ने वाले खड़े, थे शातिर बड़े 
चमगादड़ो के शहर में सन्नाटा तो नहीं था 
संगीत बज रहा था फिर भला वीणा कैसे टूट गयी 
सरगम कैसे छूट गयी ..
न सिद्धांत है न वेदांत है बस ...एक अजब सा अँधेरा है
और सूरज छिप गया समन्दर में ..
काश सुनते सन्नाटे को ...रौशनी ढूढने वालो
जहां एक ही स्वर गूंजता है जिन्दगी का ..
सृजन हो या विनाश ..पूरक या अधूरे से
सोचकर देखना कभी ...रास्ते में ये आवाज न खोई अगर .
- विजयलक्ष्मी

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