Thursday 19 September 2013

कर्ण ,बिक गया बेमोल




कर्ण ,लुटा दिया दोस्ती में खुद को 
बिक गया बेमोल 
बैठे रहे कुछ लोग रहे तराजू तौल 
सांस सांस को जोडकर खड़ा रहा बाजार 
जन्म से लेकर मृत्यु जिसका हुआ व्यापर 
स्वार्थ के अंधे कहूँ कौतुहल का जाया 
जन्मगाथा रही अजब क्यूँ कौन्तेय कहाया 
एक कृष्ण दो माँ मिली 
कर्म कर्म अजब पाया 
राधा का हो न सका कुंती ने ठुकराया 
मिली विरासत त्याग दी 
कैसा भाग्य पाया 
क्षत्रिय रक्त से भी रथ चलवाया 
दे सुकून राज्य रजा को 
उसने पाकर सब गंवाया 
कैसी किस्मत बदी भाग्य ने 
अजब लिखवाकर लाया 
फिर भी हिम्मत लिए अजब की 
नवल इतिहास रचाया 
समय चक्र ने देखो कैसा खेल रचाया 
गुरु बनाये परशुराम से 
समय ने फिर ठुकराया .
कैसा वीर अर्जुन था चस्पा राजवंश
मिला विरासत का हिस्सा लड़, राजपुत्र कहलाया 
खेल खिलाता समय सभी को 
कर्ण ने समय को खेल खिलाया .
- विजयलक्ष्मी 

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