Sunday 22 September 2013

बेटियाँ ,संस्कार ,संस्कृति की वाहक ,

बेटियाँ ,संस्कार ,संस्कृति की वाहक ,
हमारे उलटे विचार बने सदा ही बाधक 
कन्या का दोष क्या है ..दोष हमारा और हमारे द्वारा निर्मित समाज का है 
जिस समाज में देह और नेह का अंतर नहीं मालूम ..क्या खाक सुरक्षित रहेंगी बेटियां 
दिश बेटियों का नहीं हमारी सोच की दिशा और दशा दोनों का है ,
जिस आहट से दिल दहलता है कहीं वो हमारे घरों से तो नहीं निकली 
कही उसके खेवनहार हम ही तो नहीं ..
प्रेम प्यार की धरोहर नष्ट करने वाले अत्याचार अनाचार की जड़े हमारे घर में तो नहीं पनप रही ..
सोचो ..और देखो कहीं इन गुनाहों के नींव में कोई ईंट हमने तो नहीं धरी ..
बस ..मैं और तुम बदले तो सब बदल सकते है ..येही सच है न ..
तुम भी सोचकर देखना एक बार ...मेरे कहने से ,,
शायद कोई रास्ता निकल जाये ...राह सुदृढ़ हो जाये ,और भविष्य सुरक्षित !
--- विजयलक्ष्मी

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