Saturday 7 December 2013

कुछ महकती यादे ,

कुछ महकती यादे ,
कुछ अरमान
कुछ अहसास बहते लहू से 
कुछ खटखटाते से निशां 
पुरवाई संग नगमे 
कुछ आंसू की लकीरे 
और मुस्कुराते हम 
कब्र में झांक लेना तुम 
मिल जायेंगे गजल से 
जिन्दगी को लपेटे हुए 
मौत का दुशाला लिए साथ में
चंद मिटी सी लकीरे
हाथ में उभरे इन्तजार के पल
खुली आँखे दीदार को तेरे
झांकती घड़ियाँ जो ठहर सी गयी है पलकों पर
एक रोशन सी रौशनी
एक नाम गूंजता होगा हवाओ में
उनमे कांटे से चुभते हुए हम .- विजयलक्ष्मी

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