Saturday 7 December 2013

अधूरा हूँ तुम बिन प्रिये ,....

गर सांसों का आना काफी है ,

तो जिन्दा मुझको कह सकती हो 


धडकन अधूरी बिन तुम्हारे 


क्या मुझ बिन अधूरा जी सकती हो 


जिन्दगी की महक आती है जिससे 


तुम ही उपवन सा महका सकती हो 


चटक चांदनी सी खिलकर तुम ही 


रात रुपहली सी महका सकती हो 


अधूरा हूँ तुम बिन... प्रिये ,....


मुझको, तुम ही जीवन दे सकती हो.- विजयलक्ष्मी 

No comments:

Post a Comment