Thursday 23 January 2014

"अश्क है या मोती कैसे पहचाने हम,"



















अश्क है या मोती कैसे पहचाने हम,

देखते है इनमे जिन्दगी के पैमाने हम .



तन्हा होकर भी नहीं रहते ये सच है 


बेखुदी में चले खुद को आजमाने हम.



ये पैरहन से शब्द औ ओस की बुँदे 


लिखकर वही नाम चले मिटाने हम .



चिड़िया सा चहक उठता है मन यूँही 


बिखरी मायूसी को चले बुझाने हम.



राख में चिंगारी रखी हो शायद कोई 


आओ क्रांति की आग चले जलाने हम .- विजयलक्ष्मी

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