Tuesday 7 January 2014

हाँ ,थोड़ी सी तो ...इंसानियत जरूरी है

मनको की माला पिरोई है हमने 
मेरे मनके और तुम्हारे मनके 
खुशियों को लिए है संग वो मनके
चलो ढूंढते है जो टूटकर बिखरे हैं कहीं 
वो मनके भी उठा लाते है यहीं 
फकीरी सिखा देते हैं उन्हें 
चल बहुत काम है धंधे पर जाना है 
बहुत हुआ सोच विचार ...
उस बीमार को दवा पिलाना है .
चले जाया करो घर उसके भी 
बहुत गमगीन उसका फसाना हैं
कल आई थी बताने मुझको
तुमसे मिलके ही सुकून को उसने पहचाना हैं
मेरे मनको को तुम तौलते बहुत हो
मनके मनके तो रुसवा नहीं तुमसे
तुम चोरी से क्यूँ चलो हम भी साथ चलते हैं
विरह की आग को दोनों मिलकर कुछ कम करते हैं
छिडकते है खुशबू ए इतर तुम्हारे नाम का ...
हम भी उसपर इतना करम रखते हैं
थोडा प्यार डाल दो झोली में उसकी भी बहुत तरसी है ...
थोड़ी सी बेहया तो है मगर दुःख में बदली सी बरसी हैं .
प्यासे को पिला दो जल कंठ सुख गया होगा
चिल्लाते चिल्लाते गया भी दुःख गया होगा ,
अब दया आती है हरकतों पर उसकी ...
मानसिक रोग हुआ है गलती भी नहीं उसकी .
दया का पात्र है तो दया जरूरी हैं ...
हाँ ,थोड़ी सी तो ...इंसानियत जरूरी है .- विजयलक्ष्मी 

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