Saturday 1 March 2014

"ए वाइज तू सुनाता बहुत है कभी खुद भी तो सुन ,"

वाइज़ =धर्मोपदेशक
पीर-ए-मुगाँ= शराब बेचने वाला
तबस्सुम = मुस्कुराहट
तग़ाफ़ुल=ग़फ़लत, बेरुख़ी
रिन्द= शराब पीने वाला
रूदाद =दशा, वृतान्त
हामिल= भार ढ़ोने वाला
दश्त -नवर्दी= जंगलों में फिरना ,wanderer
मरगूब =जिसकी तरफ रगबत हो, रूचि

ए वाइज तू सुनाता बहुत है कभी खुद भी तो सुन ,
पीर ए मुगाँ लिए तबस्सुम ए लब रिन्द रहा है बुन.

रुदाद ए मरगूब ए वफा की खातिर ही जिन्दा रहे
तगाफुल ए मुहब्बत ए रुदाद ए किस्सा तू भी बुन.

मैं हामिल ए रुदाद ए बेवफाई हूँ समझ जायेगा
दश्त-नवर्दी हूँ मरगूब ए मुहब्बत ए रुबाई रहा हूँ बुन 


तबस्सुम ए लब लबालब रिन्द बनाया बा-नजर 
बेख़ौफ़ जी जिन्दगी किये नफरत से तौबा ए तगाफुल  - विजयलक्ष्मी

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