Saturday 1 March 2014

"तुम्हारी करनी और कथनी के अंतर को जनता बार बार क्यूँ भरे ?"

राजनैतिक पार्टियां जरा ध्यान दे ..
जोश को होश भी लेने दो जरा ... होश आया तो दिमाग चलेगा ...दिमाग चला तो ...क्या होगा ....सोचना नहीं करके दिखाना होगा ...
...राजनैतिक हल्के का शोर ..करोड़ो का खर्च !!
कौन कितने पैसे लेकर राजनीती में आया ..कितना खर्च कर रहा है ...किसने दिए .. उससे भी बड़ा सवाल ..अगर आम आदमी के पास इतने पैसे है तो आम कैसे हुआ ..? क्या एक रिक्शे वाले की जेब के चालीस रूपये चालीस हजार बन गये खर्च करते हुए ...लोगो की भावनाओं को इस तरह न भुनाओ ...भडक गयी तो जलाकर ख़ाक में मिला देगी .....सवाल करना अच्छा है लेकिन सवाल वही उठाओ जिनका उत्तर खुद के पास भी हो ...दिल्ली को छोडकर भागने वाले अगर देश को भी मझधार में ही छोड़ कर भाग गये तो क्या ......दुबारा लोक सभा चुनाव होगा .....इस खर्च को कौन सी पार्टी वहन करेगी ये भी तय कर लिया जाये तो अच्छा है ......
"" तुम्हारी करनी और कथनी के अंतर को जनता बार बार क्यूँ भरे ?""-- एक नागरिक विजयलक्ष्मी

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