Monday 31 March 2014

"हमे टूटते हुए देखना अच्छा लगा था न तुम्हे एकदिन .."

तुम निभाओ ..और
निभाने दो 
हमे भी 
अपनी मुहब्बत शौक से 
हमे सूरज का खौफ है ...अच्छा है न ..लो बस कह दिया तुमको 
और ...तुम बस इतना ही समझ लो ..तो ..
बहुत है हमारे लिए .
हमे टूटते हुए देखना अच्छा लगा था तुम्हे न एकदिन ..
करो प्रहार ..कितने कर सकते हो ..
मगर याद रखना .......
न हो ..किसी दिन 
तुम खुद भी टूट जाओ .......
हमे तोड़ने में
और सन्नाटा गहन होता चला जाये
अभी परिधियाँ बांधी हैं तुमने
हमारे लिए ..
और ......
टूटकर बिखरो ,तो ..हम नजर भी न आये ..
हमे झूठ की चिंगारी लगानी नहीं आती
मगर जब आग जलती है घर में ..खौफ तुम जैसो को डसता है ..
मेरा टूटना तुम्हे ख़ुशी दे गया इक दिन
तभी से
तुम रुक रुक प्रहार करते चले गये ..
और .... किसी दिन ...या तो ....
तुम भी जल जाओगे इस आग में ,
या ..हम विलीन
न डरा मुझको आग से यूँ ..
मैं माचिस हूँ ...दीप और मशाल जलाती हूँ
गर ..ये आग
पकड़ ली किसी दिन ..तो
भस्मीभूत हो जायेगी
सुलगकर
मेरे साथ ही
ये दुनिया .-- विजयलक्ष्मी

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