Wednesday 2 April 2014

मगर नागफनी के फूल निखरते ही जा रहे हैं ...



















लगी है आग देखिये चारों ही तरफ हमारे !
बसे हुए थे अब तक. उजड़ते ही जा रहे हैं !!

ख्वाब सजे  बहुत हमारी निगाह में हुजुर ! 
इन्तेहाँ ए दर्द देखिये बिखरते ही जा रहे हैं !!

आइना हो तुम अक्स मगर लापता सा है !
अहसास में ही तुम्हारे संवरते ही जा रहे हैं!!

अनजान सी डगर ये मंजिल है लापता सी !
रुकते नहीं कदम बस गुजरते ही जा रहे हैं !!

पत्थरों का शहर है बुत ही बुत है हर तरफ !
रंग ए वफा मे नहाकर बिगड़ते ही जा रहे है!!

देखिये मरुभूमि में बादल यूँभी नहीं बरसते!
मगर नागफनी के फूल निखरते ही जा रहे हैं !! 

-- विजयलक्ष्मी



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