" ऊदल ने आल्हा लिख डाली या चरण पखारे राजा के,
रीत कलम की चल निकली अब नेता जी के चरणों से
कैसे उद्धार करेंगे सच का चमचों की रेखा लम्बी है
कलम बिकेगी खूब यहाँ पारितोषिक नेता जी के चरणों से
जिनको क ख का ज्ञान नहीं स्वर जिनके सात हुए हैं सदा
अब ह्रस्व दीर्घ स्वर भी निकलेंगे नेता जी के चरणों से
क्या करना लिखकर गुरबत का क्या रोटी खाके करेगा गरीब
चारण भाट हुए हैं लेखक, साहित्य नेता जी के चरणों में
अब खुद्दारी भटक मरेगी बस राज चलेगा चमचों का
बिकी कलम, कानून बिके सब, नेता जी के चरणों में "|| --- विजयलक्ष्मी
रीत कलम की चल निकली अब नेता जी के चरणों से
कैसे उद्धार करेंगे सच का चमचों की रेखा लम्बी है
कलम बिकेगी खूब यहाँ पारितोषिक नेता जी के चरणों से
जिनको क ख का ज्ञान नहीं स्वर जिनके सात हुए हैं सदा
अब ह्रस्व दीर्घ स्वर भी निकलेंगे नेता जी के चरणों से
क्या करना लिखकर गुरबत का क्या रोटी खाके करेगा गरीब
चारण भाट हुए हैं लेखक, साहित्य नेता जी के चरणों में
अब खुद्दारी भटक मरेगी बस राज चलेगा चमचों का
बिकी कलम, कानून बिके सब, नेता जी के चरणों में "|| --- विजयलक्ष्मी
" कुंद बुद्धि हो चुकी या अक्ल पर ताले पड़े हैं ,
इंसानी देह में ही इंसानियत के लाले पड़े है .
इंसानी देह में ही इंसानियत के लाले पड़े है .
निकल आया साँझ का सूरज बादलों के पार
कलयुगी महाभारत है दुर्योधन से पाले पड़े हैं
कलयुगी महाभारत है दुर्योधन से पाले पड़े हैं
रावणों की कोई कमी होगी भी कैसे तुम कहो
भाई है भाई का दुश्मन लक्ष्मण के लाले पड़े हैं
भाई है भाई का दुश्मन लक्ष्मण के लाले पड़े हैं
जयद्रथ को बेटे से ज्यादा लालसा अभिमान की
अभिमन्यु कैसे है जो दुश्मनी पेट से पाले पड़े है "--- विजयलक्ष्मी
अभिमन्यु कैसे है जो दुश्मनी पेट से पाले पड़े है "--- विजयलक्ष्मी
" हो रही है राजनीति लाशों के ढेर पर ,
खा रहा है इन्सां इंसानियत बेचकर ||
खा रहा है इन्सां इंसानियत बेचकर ||
पढ़ेलिखे है गर जाहिलो सा हाल क्यूँ
हैवानियत देखो हंस रहे गला रेतकर||
हैवानियत देखो हंस रहे गला रेतकर||
गद्दी की खातिर अपनी टोपी बेच दी
गद्दार वो भी वोट दी सामान देखकर ||
गद्दार वो भी वोट दी सामान देखकर ||
सस्ता अनाज, मोबाइल और लैपटॉप
खूनपसीने की कमाई से टैक्स पेलकर ||
खूनपसीने की कमाई से टैक्स पेलकर ||
पूछो सरकारी विद्यालय से परहेज क्यूँ
क्यूँ किया अपोइन्टमेंट जाति देखकर ||
क्यूँ किया अपोइन्टमेंट जाति देखकर ||
वक्ती सुविधा नहीं अब न सूट न पैसा
अब चुनेंगे नेता भी कामकाज देखकर ||
अब चुनेंगे नेता भी कामकाज देखकर ||
सिखाओ सबक चुनाव की पाठशाला में
कैसी सरकार, मिले स्वाभिमान बेचकर "|! ----- विजयलक्ष्मी
कैसी सरकार, मिले स्वाभिमान बेचकर "|! ----- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment