Friday 23 October 2015

" इक फिदाइन बैठ देश में गाय से रोटी खाता है "

गिनना मुमकिन नहीं ,रावण कितने मेरे देश में ,
कहते फिरे जो खुद को ,राम जितने मेरे देश में
विभीषनो से भरा है भारत सुने फिकरे मेरे देश में,
बड़े भाई क्या गये विदेश वो भी बिखरे पड़े मेरे देश में
घायल है माँ भारती तस्वीर दिखने लाई हूँ ,
काटे अंग उसी के लाल तकदीर जगाने लाई हूँ
भगतसिंह आतंकी था इतिहास उठाकर देखलो
आजाद सुभाष पर सरकारी विश्वास जगाकर देखलो
कितना बड़ा राष्ट्रद्रोही था जिन्ना सबको मालूम हो जायेगा
नहीं मालूम गर तुमको आजादी का मधुमास उठाकर देखकर लो ,
जातिधर्म के नाम पर बांटा आपना देश है,,
चेहरा मोहरा इंसानी पर बाकि धूर्तता अवशेष है
आजादी लगती है बूढी ....यौवन आने से पहले,
खूबभरे है घर अपने ...गंगा पावन होने से ही पहले
ये कैसे रखवाले देश के जिन्हें संस्कार भी याद नहीं ,,
कन्या पूजन और दशहरा भी इफ्यारी समान नहीं
क्या टोपी के पैबन्दो से ये देश आगे बढ़ पायेगा ...
डेंगू स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों के हत्थे चढ़ जायेगा
कुत्ता पेटा के अंतर्गत संरक्षण पाता है,,
इक फिदाइन बैठ देश में गाय से रोटी खाता है
जिसका गोबर खाद खेत की बेटा किसान का साथी है,,
जिसका मूत्र निर्यात करेतो विदेशी पूँजी आतीहै
कुत्ते बिल्ली बच्चे हो गये औलादे पलती नहीं
माँ की ममता लगे सिंथेटिक..दौलत बिन टलती नहीं || ---- विजयलक्ष्मी

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