Saturday 28 November 2015

" असहिष्णुओ के बीच रहकर भी सहिष्णुता तमाम लिखती हूँ "

" मैंने कलम उठाई राष्ट्र का स्वाभिमान लिखती हूँ ,,
किसी से मतलब कैसा बस हिन्दुस्तान लिखती हूँ,,
बहुत खोया हुआ जमीर है जिनका इम्तेहान लिखती हूँ 
खो न जाना कलदार की चमक में सावधान लिखती हूँ ..
मुहब्बत महबूब से जाँ औ जिगर जनाब लिखती हूँ,,
मेरे लहू मे घुलने दो आब ए हिंदुस्तान लिखती हूँ ..
जन्नत की जरूरत औ चिंता जिसे हो हुआ करे साहिब
कलम से अपनी मुकाम ए हिन्दुस्तान लिखती हूँ ..
मुझे मारने से क्या हासिल होगा बंदूक वालों सोचो ,,
असहिष्णुओ के बीच रहकर भी सहिष्णुता तमाम लिखती हूँ "
--- विजयलक्ष्मी




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" अधूरी सी तमन्ना भली तो थी ,,मगर ,,
तेरी जुदाई की हद तक तो नहीं ,,||
माना रुठते थे तुमसे हम भी ,, मगर ,,
तेरे बिछड़ने की हद तक तो नहीं ,,||
धुंधलका साँझ का भाया तो था ,, मगर ,,
सूरज के छिपने की हद तक तो नहीं ,,||
बिखरते रहे खुशबू गुल बनके हम ,, मगर ,,
पंखुड़ी बिखरने की हद तक तो नहीं,,||
असहिष्णुता का राग बड़ा लम्बा हुआ ,, मगर,,
देश बंटने की हद तक तो नहीं ,,||

चुप्पी ठीक नहीं गूंगो को जुबाँ मिले ,, मगर ,,
स्वच्छन्दता की हद तक तो नहीं ..||"
 ---- विजयलक्ष्मी

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