Sunday 31 July 2016

एक आवाज एक धमाका " धडाम "

शब्दांकन पढिये एक तस्वीर ...  पढाती हूँ ||
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एक आवाज एक धमाका " धडाम "
उड़े जिस्म बनकर चीथड़े " भड़ाम"
एक बाजू उखड़ कर गिरी सडक पर
दूजी आधी होकर बोली " सड़ाम"
चीखा जो ऊपर उड़कर हो शांत
गिरा पत्थर सा सडक पर " कड़ाम "
जाने किसका बेटा था रक्तरंजित
जाने किसका लुट चुका था " सुहाग"
फटे कपड़ो से आधे तिहाई जिस्म
मुश्किल हैं पहचान दफन या " आग "
गुनाह उनका तो बताये कोई आतंकी
कोई उनका जल जाये लगे जो "आग "
चले दर्द रिश्तों का उनके भी साथ
खिलौने कूकर ब्रीफकेस "मौत का साथ"
दूर तक बिखरा लहू संग अधजले जिस्म
काली स्याह अधजली देह भीतर से झांकता " ताजा मांस"
बिखरी हुई मोटरसाईकिल टूटी कार
नजर में दूर तक मंजर " लहुलुहान "
ये धोखा किसको इंसान को या खुदा को
न मिलेगी जन्नत न हूर लिख लो आज
--------- विजयलक्ष्मी

Saturday 30 July 2016

" शब्दों में वो बात कहाँ जो नूर ए नजर में हैं "

" शब्दों में वो बात कहाँ जो नूर ए नजर में हैं ,,
चेहरे में क्या रखा है ,बस चरित्र शिखर में हैं ||
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शख्सियत की पहचान दौलत से करने वालों,,
अपने देश की सुरक्षा देशभक्तों के जिगर से है ||
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उनका भरोसा क्या जो दलाली की खाते रोटी
पूछो उनसे,, जख्म जिनके लख्ते-जिगर पे हैं ||
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बिकते मिले कागजी टुकडो में जिनके जमीर ..
दलाली है ईमान,पीढियों से दौलत ए असर हैं ||
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कृषक की आत्महत्या जिनकी सभा के बीच
पूछिए तो उनसे पाक-साफ़ किसकी नजर में हैं ||
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पाखंड के पुजारी,झूठ के प्रणेता सत्य खो गया
राजनैतिक स्वार्थ में लटकी नैतिकता अधर में है|| "
 ---------- विजयलक्ष्मी

Friday 29 July 2016

" दुश्मनों की ईंट से भी अब तो तोप बजनी चाहिए "

" पैलेट गन के छर्रे बुला रहे थे ,,
मिलने वाले रिश्तेदारी निभा रहे थे ,,
गायब विमान में शायद आतंकी नही देशभक्त थे दोस्तों ,,
सोचकर बताओ..किस किसको याद आ रहे ,,
देशभक्तों की आँखों के आंसू नहीं सूख रहे ,,
भ्रष्टाचार का दाग लगाते ,, किन्तु..
काश्मीर के दरिंदो के पास न जाते ...
देश के टुकड़े करने वालों के प्रति तो प्यार न जताते ,,,
इन्हें किसान की चिंता क्या होगी ,,,
जो देश से वफा नहीं निभाते ,
संसद में बैठकर कोसना ,,
दिखावे के आंसू रोना ,,
सोना और गाली देना है काम चार ...
अपने गिरेबान में क्यूँ नहीं झांकते यार
एक इन्कलाब आये ..सैलाब बन बहा ले जाए
और ऊँची आवाज में हो जयजयकार
सैनिको की सुने दहाड़ ..
एक सलामी नहीं कतार लगनी चाहिए
दुश्मनों की ईंट से भी अब तो तोप बजनी चाहिए
जयहिंद !
"!---- विजयलक्ष्मी


" जयहिंद जब जब पुकारा ,,
लगा इंकलाबी नारा ,,
सैनिक जितना देशभक्त कोई नहीं ,,
दुःख से सरोबार रहकर आँख जो रोईनहीं 
ललकार कर करो नाश ,,
सलामी देता रहा है देता रहेगा भारत का इतिहास "--- विजयलक्ष्मी



" मुहब्बत है या वेश्या कोई ,,,जो चौराहे बिकती मिले ,,
कीमत, वफा में जान भी कम है, मगर दिल तो माने ||


कामी दोगले देशद्रोही फिरकापरस्ती में हुए संलग्न ,
सौपे कैसे यूँही वतन,,वतनपरस्ती को दिल तो माने ||


भरोसा करें किसपर जहाँ फिरकापरस्ती पल रही हो ,

दगा नहीं मिलेगा ईमानकसम ,मगर दिल तो माने ||

क्यूँ बंदूक लगती प्यारी,विश्वासघात की करो इबादत,
वन्देमातरम उचारो , तुम्हारे सच को दिल तो माने ||


करनी-कथनी में अंतर क्यूँ , झूठे सच का जन्तर क्यूँ ,
काश्मीर-काश्मीर चिल्लाते हो अपना दिल तो माने ||
" -------- विजयलक्ष्मी

Sunday 24 July 2016

"पर इतना "unreasonable proposal" लेकर कृष्ण गए क्यों थे...??

दुनियादारी से वाकिफ एक पिता... अपने बेटे को कुछ समझाते हुए... महाभारत का रेफरेंस दे रहा था कि... बेटा, Conflict को जहाँ तक हो सके, avoid करना चाहिए...!
महाभारत से पहले कृष्ण भी गए थे दुर्योधन के दरबार में... यह प्रस्ताव लेकर, कि हम युद्ध नहीं चाहते... तुम पूरा राज्य रखो... पाँडवों को सिर्फ पाँच गाँव दे दो... वे चैन से रह लेंगे, तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे...
बेटे ने पूछा - "पर इतना "unreasonable proposal" लेकर कृष्ण गए क्यों थे...?? अगर दुर्योधन प्रोपोजल एक्सेप्ट कर लेता तो...??
पिता - नहीं करता...!
कृष्ण को पता था कि वह प्रोपोजल एक्सेप्ट नहीं करेगा... "उसके मूल चरित्र के विरुद्ध था..."
बेटे ने फिर प्रश्न किया - "फिर कृष्ण ऐसा प्रोपोजल लेकर गए ही क्यों थे...?"
वे तो सिर्फ यह सिद्ध करने गए थे कि... दुर्योधन कितना अन-रीजनेबल,
कितना अन्यायी है...
वे पाँडवों को सिर्फ यह दिखाने गए थे,
कि देख लो बेटा... युद्ध तो तुमको लड़ना ही होगा... हर हाल में...
अब भी कोई शंका है तो निकाल दो मन से...!
तुम कितना भी संतोषी हो जाओ... कितना भी चाहो कि "घर में चैन से बैठूँ..."
"दुर्योधन तुमसे हर हाल में लड़ेगा ही..." "लड़ना.... या ना लड़ना... तुम्हारा ऑप्शन नहीं है..."
फिर भी बेचारे अर्जुन को आखिर तक शंका रही...
"सब अपने ही तो बंधु बांधव हैं...."
कृष्ण ने सत्रह अध्याय तक फंडा दिया... फिर भी शंका थी...
(ज्यादा अक्ल वालों को ही ज्यादा शंका होती है ना...)
"दुर्योधन को कभी शंका नही थी..."
उसे हमेशा पता था कि "उसे युद्ध करना ही है..."
उसने गणित लगा रखा था...
हिन्दुओं को भी समझ लेना होगा कि...
"कन्फ्लिक्ट होगा या नहीं, यह आपका ऑप्शन ‪#‎नहीं‬ है...
आपने तो पाँच गाँव का प्रोपोजल भी देकर देख लिया...
देश के दो टुकड़े मंजूर कर लिए,
(उस में भी हिंदू ही खदेड़ा गया अपनी जमीन जायदाद ज्यों की त्यों छोड़कर...)
हर बात पर "विशेषाधिकार" देकर देख लिया... हज के लिए सब्सिडी देकर देख ली... उनके लिए अलग नियम कानून (धारा 370) बनवा कर देख लिए...
आप चाहे जो कर लीजिए, उनकी माँगें नहीं रुकने वाली..."
उन्हें सबसे स्वादिष्ट उसी ‪#‎गउमाता‬ का माँस लगेगा जो आपके लिए पवित्र है,
उसके बिना उन्हें भयानक कुपोषण हो रहा है...
उन्हें "सबसे प्यारी" वही मस्जिदें हैं,
जो हजारों साल पुराने "आपके" ऐतिहासिक मंदिरों को तोड़ कर बनी हैं...
उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी उसी आवाज से है... जो मंदिरों की घंटियों और पूजा-पंडालों से आती है...
ये माँगें "गाय" को काटने तक नहीं रुकेंगी... यह समस्या मंदिरों तक नहीं रहने वाली... यह हमारे घर तक आने वाली है... हमारी "बहू-बेटियों" तक जाने वाली है...
"आज का तर्क है..."
तुम्हें गाय इतनी प्यारी है तो सड़कों पर क्यों घूम रही है...?? हम तो काट कर खाएँगे... हमारे मजहब में लिखा है...!
कल कहेंगे...
"तुम्हारी बेटी की इतनी इज्जत है, तो वह अपना "खूबसूरत चेहरा ढके बिना" घर से निकलती ही क्यों है...?? हम तो उठा कर ले जाएँगे...!!
उन्हें समस्या गाय से नहीं है... हमारे "अस्तित्व" से है... हम जब तक हैं...
उन्हें कुछ ना कुछ प्रॉब्लम रहेगी...
इसलिए हे अर्जुन... और डाउट मत पालो...
कृष्ण घंटे भर की क्लास बार-बार नहीं लगाते...
25 साल पहले कश्मीरी हिन्दुओं का सब कुछ छिन गया... वे शरणार्थी कैंपों में रहे, पर फिर भी वे आतंकी नहीं बने...
जबकि कश्मीरी मुस्लिमों को सब कुछ दिया गया... वे फिर भी आतंकवादी बन कर जन्नत को दोखज़ बना रहे हैं...
पिछले साल की बाढ़ में सेना के जवानों ने जिनकी जानें बचाई वो आज उन्हीं जवानों को पत्थरों से कुचल डालने पर आमादा हैं... इसे ही कहते हैं संस्कार... ये अंतर है... ‪#‎धर्म‬ और‪#‎मजहब‬ में...!!
एक जमाना था जब लोग मामूली चोर के जनाजे में शामिल होना भी शर्मिंदगी समझते थे...
और एक ये गद्दार और देशद्रोही लोग हैं जो खुले आम... पूरी बेशर्मी से एक आतंकवादी के जनाजे में शामिल हैं...!
सन्देश साफ़ है...
एक कौम... देश और तमाम दूसरी कौमों के खिलाफ युद्ध छेड़ चुकी है...
अब भी अगर आपको नहीं दिखता है तो... यकीनन आप अंधे हैं... या फिर शत प्रतिशत देश के गद्दार...!!
आज तक हिंदुओं ने किसी को ‪#‎हज‬ पर जाने से नहीं रोका... लेकिन ‪#‎अमरनाथ‬ यात्रा हर साल बाधित होती है... फिर भी हम ही असहिष्णु हैं...
ये तो कमाल की धर्मनिरपेक्षता है... है ना..."

Saturday 23 July 2016

" आजाद हैं , आजाद ही रहेंगे हम .."जयहिंद !!

जयहिंद ||

स्वतंत्रता सेनानी : आजाद हिंद फ़ौज की सेनानी श्रद्धेय लक्ष्मी सहगल जी के निर्वाण और
शहीद चन्द्रशेखर आजाद जी के जन्मदिवस पर शत शत नमन व् श्रद्धासुमन ...
....
आज अजीब सा दिन है ...
एक जिंदगी जा रही है विदा हों जहाँ से ..
दूसरी और जिंदगी के आने का दिन ये मुकर्रर..
अजब सी कहानी है दोनों दीवाने ...
अपने वतन पर जाँ लुटा दे..
लक्ष्मीबाई सरीखी लडती चली वो नाम को नाम फिर से देती चली वो ..
लुटा दी जाँ एक ने गोलियों से ..
वतन पे फ़िदा थे वो आजाद थे परतंत्र देश मैं भी ...
स्वाधीनता जिनकी मंजिल बनी थी ..
लहू के जिनके वो दुल्हन सजी थी ,
एक वो चली जाँ आज जवानी जिसने वतन पे लुटा दी ...
आखिरी सांस तक देश सेवा में बिता दी..
एक वो है जिन्हें न फुर्सत हुई दो आंसूं बहा दे..
याद में वतन पे मिटने वालों की चिता ही सजा दे..
न फुर्सत उन्हें देश बेचने से अब भी ..
हौसले है इतने फिर आजादी मिटा दें...
अभी साँस उनकी रुकने न पायी ...
रूहें भी रोती होगीं उनकी देके दुहाई
कैसा अजब ये दिन आज आया ..
शब्दों में बांधूं अब किसका साया ...
दोनों ही दीवाने दोनों मस्ताने ..
देश पे खुद को मिटा कर चले वो ...
उन्हें भावनाओं का शत शत नमन है
कैसे उनके घर?और घर वाले .....
उनका अपना घर से पहले वतन है . --विजयलक्ष्मी

.
कहा जाता है की आजाद के इस तरह अपनी जान दे देने की रहस्य एक फाइल में छुपा है।
चंद्रशेखर आजाद की मौत की कहानी भी उतनी ही रहस्यमयी है जितनी की नेताजी सुभाष चंद्र बोस की। आजाद की मौत से जुडी एक गोपनीय फाइल आज भी लखनऊ के सीआइडी ऑफिस में रखी है। इस फाइल में उनकी मौत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें दर्ज हैं। फाइल का सच सामने लाने के लिए कई बार प्रयास भी हुए पर हर बार इसे सार्वजनिक करने से मना कर दिया गया। इतना ही नहीं भारत सरकार ने एक बार इसे नष्ट करने के आदेश भी तत्कालीन मुख्यमंत्री को दिए थे। लेकिन, उन्होंने इस फाइल को नष्ट नहीं कराया।,,
.
.दाग दी गोलिया बंदूक की एक को छोडकर ,,
हत्थे चढने से पहले मारी खुद को मोडकर..||
वीर थे अंदाज से शहंशाह थे वो विश्वास के
मातृभूमि हित चले अपना सबकुछ छोडकर ||
अंग्रेज हैरत में थे डरते रहे पास जाने से भी
आजाद थे आजाद रहे ,, क्या गये वो छोडकर ||
न नेहरु करते मुखबिरी न हत्या होती उनकी
देश हित गये थे मिलने सारे मतभेद छोडकर ||
हर प्रयास देश की आजादी के नाम लिखा
किया फरेब बताया अंग्रेजो को भाईचारा छोडकर || ---- विजयलक्ष्मी

Thursday 21 July 2016

आखिर ये प्रश्न उठा ही क्यूँ ?

ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री
जूलिया गिलार्ड को दुनिया की रानी बना देना चाहिए !!
इस महिला प्रधानमंत्री ने जो कहा है, उस बात को कहने के लिए बड़ा साहस और आत्मविश्वास चाहिए !
पूरी दुनिया के सब देशों में ऐसे ही लीडर होने चाहिए !!
वे कहती हैं :-
"मुस्लिम, जो इस्लामिक शरिया क़ानून चाहते हैं, उन्हें बुधवार तक ऑस्ट्रेलिया से बाहर चले जाना चाहिये।
क्योंकि, ऑस्ट्रेलिया देश के कट्टर मुसलमानो को आतंकवादी समझता है।
ऑस्ट्रेलिया के हर एक मस्जिद की जाँच होगी और मुस्लिम इस जाँच में हमे सहयोग दें ।
जो बाहर से उनके देश मे आए हैं, उन्हें ऑस्ट्रेलिया में रहने के लिए अपने आप को बदलना होगा और ना कि ऑस्ट्रेलियन लोगो को ......
पर मैं ऑस्ट्रेलियन लोगों को विश्वास देती हूँ कि हम जो भी कर रहे है वो सिर्फ़ ऑस्ट्रेलिया के लोगों के हित में कर रहे हैं ।
हम यहाँ इंग्लिश बोलते है ना कि अरब ..
इसलिए अगर इस देश में
रहना होगा तो आपको इंग्लिश सीखनी ही होगी ।
ऑस्ट्रेलिया में हम JESUS को भगवान मानते हैं, हम सिर्फ़ हमारे CHRISTIAN-RELIGION को मानते है और किसी धर्म को नहीं, इसका यह मतलब नहीं कि हम सांप्रदायिक है !
इसलिए हमारे यहां भगवान की तस्वीर और धर्म ग्रंथ सब जगह होते हैं !
अगर आपको इस बात से
आपत्ति है तो दुनिया में आप ऑस्ट्रेलिया छोड़ कर,
कहीं भी जा सकते हैं ।
ऑस्ट्रेलिया हमारा मुल्क है,
हमारी धरती है, और हमारी सभ्यता है ।
हम आपके धर्म को नहीं मानते, पर आपकी भावना को मानते हैं !
इसलिए अगर आपको नमाज़ पढ़नी है तो ध्वनि प्रदूषण ना करें ....
हमारे ऑफिस, स्कूल
या सार्वजनिक जगहों में नमाज़ बिल्कुल ना पढ़ें !
अपने घरों में या मस्जिद में शांति से नमाज़ पढ़ें । जिस से हमें कोई तकलीफ़ ना हो ।
अगर आपको हमारे ध्वज से, राष्ट्रीय गीत से, हमारे धर्म से या फिर हमारे रहन-सहन से कोई भी शिकायत है, तो आप अभी इसी वक़्त ऑस्ट्रेलिया छोड़ दें " ।
जूलिया गिलार्ड -
प्रधानमंत्री ऑस्ट्रेलिया

Friday 15 July 2016

कैसा धर्म कैसा सरमाया, कातिल तुम्हे बनाता है

क्यूँ कहते हो कोई जाति नही आतंकवादी की,
कहो कीमत कौन चुका रहा है अपनी आजादी की ||
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लिए हाथ बंदूक औ गोले भोली जनता को मार रहे,,
फूंको जिस्म, जिन्हें सैनिक मौत के घाट उतार रहे ||
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कुत्सित मन में उपकारों का कोई मोल नहीं दीखता
अपना दुश्मन हिन्दू संग हर सैनिक उनको दीखता ||
.
खाता रहा जिस थाली में बरसों उसी में छेद किया,,
नमकहरामी में जिसने अपना लहू ही सफेद किया ||
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मक्कारी संग झूठ बोल सत्य को दफन किया जिसने ,,
जिसने भी तुमको दिया ठिकाना इनाम कफन दिया किसने ||
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गद्दारों को शहीद बताते तुमको तो आती लाज नहीं ,,
इंसानियत को मिटा रहा जो उसको कहते समाज नहीं ||
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ऐसे इस्लाम को क्या कहें जो आतंकी पैदा करता है
हर मुस्लिम के आतंकी होने का शक पैदा करता है ||
.
जिसने तुमको पनाह दी उसी का कत्ल किया तुमने
कश्मीरी कौम है कश्मीरी पंडित ,,बेघर किया तुमने ||
.
कहीं बंदूक उठी कहीं बम गोलो में आग लगाते हो ..
मारते इन्सान को हैवानियत का खेल रचाते हो ||
.
कैसा धर्म कैसा सरमाया, कातिल तुम्हे बनाता है
काम करे काफ़िर वाले औरो को काफ़िर बताता है ||
.
क्यूँ इल्जाम लगे हमपर इस्लाम को आतंकी कहते हो,,
तुम ही छोड़ दो ऐसा मजहब जिसमे आतंकी रहते हो ||
----------- विजयलक्ष्मी

Tuesday 12 July 2016

" जौहर और रानी पद्मावती "

भारत की गौरव गाथा ....

चित्तौड़ की वीरांगना 


"रानी पद्मिनी" जिस पर संजय लीला भंसाली फ़िल्म बनाने जा रहे हैं, क्या वो रानी की असली कहानी दिखा पाएंगे या फिर बाजीराव मस्तानी की तरह एक साहसिक कहानी की फजीहत करके उसको लव स्टोरी बना देंगे और पूरे इतिहास को ही बरगला देंगे ?
खैर हम आपको बताते है रानी पद्मिनी की असली कहानीl
रावल समरसिंह के बाद उनका पुत्र रत्नसिंह चितौड़ की राजगद्दी पर बैठा | रत्नसिंह की रानी पद्मिनी अपूर्व सुन्दर थी | उसकी सुन्दरता की ख्याति दूर दूर तक फैली थी | उसकी सुन्दरता के बारे में सुनकर दिल्ली का तत्कालीन बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो उठा और उसने रानी को पाने हेतु चितौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी | उसने चितौड़ के किले को कई महीनों घेरे रखा पर चितौड़ की रक्षार्थ तैनात राजपूत सैनिको के अदम्य साहस ववीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावजूद वह चितौड़ के किले में घुस नहीं पाया |
तब उसने कूटनीति से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चितौड़ रत्नसिंह के पास भेज सन्देश भेजा कि "हम तो आपसे मित्रता करना चाहते है..रानी की सुन्दरता के बारे बहुत सुना है सो हमें तो सिर्फ एक बार रानी का मुंह दिखा दीजिये..हम घेरा उठाकर दिल्ली लौट जायेंगे"!
सन्देश सुनकर रत्नसिंह आगबबुला हो उठे पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रत्नसिंह को समझाया कि " मेरे कारण व्यर्थ ही चितौड़ के सैनिको का रक्त बहाना बुद्धिमानी नहीं है | "
रानी को अपनी नहीं पूरे मेवाड़ की चिंता थी वह नहीं चाहती थी कि उसके चलते पूरा मेवाड़ राज्य तबाह हो जाये और प्रजा को भारी दुःख उठाना पड़े क्योंकि मेवाड़ की सेना अल्लाउद्दीन की विशाल सेना के आगे बहुत छोटी थी | सो उसने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि अल्लाउद्दीन चाहे तो रानी का मुख आईने में देख सकता है |
अल्लाउद्दीन भी समझ रहा था कि राजपूत वीरों को हराना बहुत कठिन काम है और बिना जीत के घेरा उठाने से उसके सैनिको का मनोबल टूट सकता है साथ ही उसकी बदनामी होगी वो अलग..सो उसने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया |
चितौड़ के किले में अल्लाउद्दीन का स्वागत रत्नसिंह ने अतिथि की तरह किया |
रानी पद्मिनी का महल सरोवर के बीचों बीच था सो दीवार पर एक बड़ा आइना लगाया गया रानी को आईने के सामने बिठाया गया | आईने से खिड़की के जरिये रानी के मुख की परछाई सरोवर के पानी में साफ़ पड़ती थी वहीँ से अल्लाउद्दीन
को रानी का मुखारविंद दिखाया गया | सरोवर के पानी में रानी के मुख की परछाई में उसका सौन्दर्य देख देखकर
अल्लाउद्दीन चकित रह गया और उसने मन ही मन रानी को पाने के लिए कुटिल चाल चलने की सोच ली! जब रत्नसिंह अल्लाउद्दीन को वापस जाने के लिएकिले के द्वार तक छोड़ने आये तो अल्लाउद्दीन ने अपने सैनिको को संकेत कर रत्नसिंह को धोखे से गिरफ्तार कर लिया |
रत्नसिंह को कैद करने के बाद अल्लाउद्दीन ने प्रस्ताव रखा कि रानी को उसे सौंपने के बाद ही वह रत्नसिंह को कैद मुक्त करेगा | रानी ने भी कूटनीति का जबाब कूटनीति से देने का निश्चय किया और उसने अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा कि -" मैं मेवाड़ की महारानी अपनी सात सौ दासियों के साथ आपके सम्मुख उपस्थित होने से पूर्व अपने पति के दर्शन
करना चाहूंगी यदि आपको मेरी यह शर्त स्वीकार है तो मुझे सूचित करे | रानी का ऐसा सन्देश पाकर कामुक अल्लाउद्दीन के ख़ुशी का ठिकाना न रहा ,और उस अदभुत सुन्दर रानी को पाने के लिए बेताब उसने तुरंत रानी की शर्त स्वीकार कर सन्देश भिजवा दिया |
उधर रानी ने अपने काका गोरा व भाई बादल के साथ रणनीति तैयार कर सात सौ डोलियाँ तैयार करवाई और इन डोलियों में हथियार बंद राजपूत वीर सैनिक बिठा दिए! डोलियों को उठाने के लिए भी कहारों के स्थान पर छांटे हुए वीर सैनिको को कहारों के वेश में लगाया गया |इस तरह पूरी तैयारी कर रानी अल्लाउद्दीन के शिविर में अपने पति को छुड़ाने हेतु चली! उसकी डोली के साथ गोरा व बादल जैसे युद्ध कला में निपुण वीर चल रहे थे | अल्लाउद्दीन व उसके सैनिक रानी के काफिले को दूर से देख रहे थे |
सारी पालकियां अल्लाउदीन के शिविर के पास आकर रुकीं और उनमे से राजपूत वीर अपनी तलवारे सहित निकल कर यवन सेना पर अचानक टूट पडे l इस तरह अचानक हमले से अल्लाउद्दीन की सेना हक्की बक्की रह गयी और गोरा बादल ने तत्परता से रत्नसिंह को अल्लाउद्दीन की कैद से मुक्त कर सकुशल चितौड़ के दुर्ग में पहुंचा दिया |
इस हार से अल्लाउद्दीन बहुत लज्जित हुआ और उसने अब चितौड़ विजय करने के लिए ठान ली 
आखिर अल्लाउद्दीन के छ:माह से ज्यादा चले घेरे व युद्ध के कारण किले में खाद्य सामग्री अभाव हो गया तब राजपूत सैनिकों ने केसरिया बाना पहन कर जौहर और शाका करने का निश्चय किया | जौहर के लिए गोमुख के उत्तर वाले मैदान में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया | रानी पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 राजपूत रमणियों ने गोमुख में स्नान कर अपने सम्बन्धियों को अन्तिम प्रणाम कर जौहर चिता में प्रवेश किया | थोडी ही देर में देवदुर्लभ सौन्दर्य अग्नि की लपटों में स्वाहा होकर कीर्ति कुंदन बन गया | जौहर की ज्वाला की लपटों को देखकर अलाउद्दीन खिलजी भी हतप्रभ हो गया | महाराणा रतन सिंह के नेतृत्व में केसरिया बाना धारण कर 30000 राजपूत सैनिक किले के द्वार खोल भूखे सिंहों की भांति खिलजी की सेना पर टूट पड़े!
भयंकर युद्ध हुआ गोरा और उसके भतीजे बादल ने अद्भुत पराक्रम दिखाया बादल की आयु उस वक्त सिर्फ़ बारह वर्ष
की ही थी उसकी वीर गाथा का गीतकार ने इस तरह वर्णन किया -
"बादल बारह बरस रो,लड़ियों लाखां साथ |
सारी दुनिया पेखियो,वो खांडा वै हाथ ||"
इस प्रकार छह माह और सात दिन के खुनी संघर्ष के बाद 18 अप्रेल 1303 को विजय के बाद असीम उत्सुकता के साथ
खिलजी ने चित्तोड़ दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन उसे एक भी पुरूष,स्त्री या बालक जीवित नही मिला जो यह बता सके कि आख़िर विजय किसकी हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सके | उसके स्वागत के लिए बची तो सिर्फ़ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला और क्षत-विक्षत लाशे और उन पर मंडराते गिद्ध और कौवे |
रत्नसिंह युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए और रानी पद्मिनी राजपूत नारियों की कुल परम्परा मर्यादा और अपने कुल गौरव की रक्षार्थ जौहर की ज्वालाओं में जलकर स्वाहा हो गयी जिसकी कीर्ति गाथा आज भी अमर है और सदियों तक आने वाली पीढ़ी को गौरवपूर्ण आत्म बलिदान की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी |
चितौड़ यात्रा के दौरान पद्मिनी के महल को देखकर स्व.तनसिंह जी ने अपनी भावनाओं को इस तरह व्यक्त किया -
यह रानी पद्मिनी के महल है | अतिथि-सत्कार की परम्परा को निभाने की साकार कीमतें ब्याज का तकाजा कर रही है. जिसके वर्णन से काव्य आदि काल से सरस होता रहा है,जिसके सोंदर्य के आगे देवलोक की सात्विकता बेहोश
हो जाया करती थी;जिसकी खुशबू चुराकर फूल आज भी संसार में प्रसन्ता की सौरभ बरसाते हैl उसे भी कर्तव्य पालन की कीमत चुकानी पड़ी ? सब राख़ का ढेर हो गई केवल खुशबु भटक रही है-पारखियों की टोह में | क्षत्रिय होने का इतना दंड शायद ही किसी ने चुकाया हो | भोग और विलास जब सोंदर्य के परिधानों को पहन कर,मंगल कलशों को आम्र-पल्लवों से सुशोभित कर रानी पद्मिनी के महलों में आए थे.तब सती ने उन्हें लात मारकर जौहर व्रत का अनुष्ठान किया था | अपने छोटे भाई बादल को रण के लिए विदा देते हुए रानी ने पूछा था,- " मेरे छोटे सेनापति ! क्या तुम जा रहे हो ?" तब सोंदर्य के वे गर्वीले परिधान चिथड़े बनकर अपनी ही लज्जा छिपाने लगे; मंगल कलशों के आम्र पल्लव सूखी पत्तियां बन कर अपने ही विचारों की आंधी में उड़ गए;भोग और विलास लात खाकर धुल चाटने लगे | एक और उनकी दर्दभरी कराह थी और दूसरी और धू-धू करती जौहर यज्ञ की लपटों से सोलह हजार वीरांगनाओं के शरीर की समाधियाँ जल रही थी |कर्तव्य की नित्यता धूम्र बनकर वातावरण को पवित्र और पुलकित कर रही थी और संसार की अनित्यता जल-जल कर राख़ का ढेर हो रही थी |

Wednesday 6 July 2016

" गर जमीर जिन्दा होता तो शायद होता विश्वास का काफिला "

" एक आइना हूँ मैं ,,गिरेबाँ में झांकिए ,,
जिन्दगी से पहले वक्त को न आंकिये
 " --- विजयलक्ष्मी
 " काफिला ....
निज स्वार्थ का काफिला ,,

दौलत के बाजार का सिलसिला
साहित्य की ललकार का होता ..
जिन्दगी के साथ का होता ..
दोस्ती का हाथ का होता ..
तो शायद होता विश्वास का काफिला ,,
काटिए गला
रस्ते की सीढियों को तोडिये
निज स्वार्थ हित मुख मोड़िये
बड़े तो पेड़ खजूर भी है साहिब ..
मगर कोई पत्थर नहीं मारता
दर्द की बिनाई पर धरा अभिमान का काफिला
दिखावे जमी पर उगते आसमान का काफिला
होता यदि साथ और अपनत्व का काफिला
तो शायद होता विश्वास का काफिला
नाम रखने से नहीं बनता काफिला
शान दिखाने से नहीं बनता काफिला
रेतीली जमीं पर नहीं चलता काफिला
दगाबाजों के साथ नहीं बनता काफिला
हर आहट पर बनता है काफिला
धडकनों की ताल पर चलता है काफिला
टूटे विश्वास कब बढ़ता काफिला
गर जमीर जिन्दा होता
तो शायद होता विश्वास का काफिला
||"
--------- विजयलक्ष्मी

Monday 4 July 2016

" " आज ईद मुबारक कहने का मन नहीं है हमारा ...क्यूंकि ..."

" पूछना था इक सवाल ..उपर वाले को इन्सान ने कब धार्मिक बनाया ..
किसी एक का नहीं है ,, " इश्वर एक ही है"मुझे तो यही था पढाया ..
कोई हिन्दू बना बैठा कोई मुस्लिम कोई क्रिश्चन कहता है 
ये भी तो कहो इश्वर ने खतना कब और किस दिन करवाया ..
सच बताना ..मुझे धर्म का बड़ा होना स्वीकार तभी होगा ..
किसने बम-बंदूक निहत्थों पर उठाना किस ईश्वर ने सिखाया ,,
टीवी पर चीख रहा था कोई मुसलमानों तुम्हे आतंकी होना पड़ेगा
फिर आतंक का कोई धर्म नहीं होता ये झूठ क्यूँ किसने फैलाया
यदि ईमान के पक्के हो मुसलसल इन्सान हो ..कहो दरार को क्यूँकर बढ़ाया
चोराहे पर किया नंगा ..जिसे घर की देहलीज में रखना था
उसने इंसानी दी इंसान ने उसी को बाँट खाया ..
चीखने से मुसलसल मिलता यदि खुदा ... चीखो कि आसमान गिर जाये
चीखो इतना जोर से धरती की थर्राने लगे काया ...
इंसानियत बेचकर जमीर को कूटकर जहर न मिलाओ ..
न हो कहीं मिल जाए उपर वाला पूछ बैठो ...ये कौन से धर्म के वस्त्र पहन आया
जा लौट हमे नहीं सुननी हमे जातियां और धर्म प्यारे हुए इसकदर ...
मार डालेंगे तुझे भी ...तू अगर काफ़िर की पोशाक में आया
 " ---- विजयलक्ष्मी



आज ईद मुबारक कहने का मन नहीं है हमारा ...क्यूंकि ...
लहू में लथपथ है जमी इन्सान के ,,
ईमान जीते जी ही मर गया ..
कोई यजीद को जीता है यहाँ ..
कोई मस्जिद तोड़ कहता है इस्लाम मर गया ||
क्यूँ नाम रखते हो चाँद को अमन का कहकर
उनसे तो पूछा होता कभी पलटकर
सैनिको पर क्यूँ फेंकते हो पत्थर ...
जबकि मरते मरते भी वो जान वतन के नाम कर गया ||
ईद आ गयी लेकिन ...हामिद नहीं पहुंचा ...चिमटे के बिना बूढी दादी की अंगुलियाँ आज भी जल रही हैं ....उस पर संगीनों से उगलती आग का साया ... उस पर ईद का बाजार और ईदी में क्या मिलेगा सबको बस यही इन्तजार ...क्या अमन चैन मिलेगा ....या .. बस रमजान के दिनों के बम-विस्फोट ? " ----- विजयलक्ष्मी


" तुम खुदा से मांगों तुम्हारी जान बख्श दे शायद ,,
मुझे मेरे ईश्वर पर पूरा भरोसा है ...
बंदूक की गोली इस देह को मिटा सकती है 
मेरे जिन्दा जमीर से हारेगी हर बार 
जान की खैर को आयतों का फाहा रखो तुम 
तुम बिकाऊ ठहरे ...
कितने मारोगे कुरआन के नाम पर ..
अफ़सोस कुरआन के मानने वाले जाने इन्सान कब बनेंगे
क्यूंकि अख़बार में छपे हालात कहते हैं ...
वोटो की जमात के हाथ सब बिक चुके हैं
ये नेता ,, ये इन्सान से दीखते पशु ..
इंसानियत मर रही है लम्हा लम्हा
अजब खेल है मौत का ..
कोई फतवा नहीं मांगता आतंकवाद के खिलाफ ,,
ये कैसी विडम्बना है औरत के नाम पर फतवा
शिक्षा के विरोध में फतवा
संगीत के स्वरों पर पहरेदार है फतवा
बीवी को माँ मानने का फतवा
बीवी को काट खाने का फतवा
नौ बरस की नादाँ से निकाहनामे का फतवा
खून से ब्याह रचाने का फतवा
नहीं आता तोखंजर चाक़ू का फतवा
नहीं आता तो गाय माता का फतवा
नहीं आता तो बम -बंदूक पर फतवा
नहीं आता तो बच्चो की गिनती का फतवा
नहींआता तो राष्ट्रप्रेम का फतवा
नहीं आता तो अमन पसन्दगी का फतवा
नहीं आता तो बस इंसानी ईमान का फतवा
" --------- विजयलक्ष्मी