Thursday 14 September 2017

हिंदी दिवस की तैयारी हो चुकी है ,,वी कांट लीव दिस अपूर्चनिटी

कूल डूडस हिंदी दिवस ।।
हे डूड्स हिंदी दिवस मनाया ?
व्हाई नॉट, डियर
इतना इम्पोर्टेंट डे है न

ट्विटर से फेसबुक तक डियर
वी कांट लीव दिस अपूर्चनिटी
अपनी मदरटंग है डियर
ये तो ड्यूटी बनता है न
रिस्पेक्ट करने का
सब लोग इकट्ठा हुआ,, हिंदी में बोलने का बोला
कुछ ठरकी लोग भी थे
ठरकी बोले तो ,,
जाहिल थे गंवई लोग ,,,
बोलने को शुरू हूं तो बोलते चले गए
क्या बोले ,,सुनी
अरे वही सब ,,सबको रामराम
अनपढ़ जो ठहरे ये लोग यहीं के म्युनिसिपल स्कूल में पढ़े हैं न
उन्हे कल्चर के बारे में कुछ भी नहीं पता डियर
अरे उन्हें छोड़ शाम को सेलिब्रेट करते हैं न एक नई पार्टी
रिलेक्स करेंगे सब मिलकर ,,
स्पेशल होगी शाम की हिंदी गैट टूगैदर ।
ओके डियर हैप्पी हिंदी डे ।।
---- विजयलक्ष्मी




अंधियारी रतिया बीती ,जाग री ।।
उठ भोर ने भी खोली गाँठ री ।।
सूर्य रश्मियों ने छूकर तारों को सुलाया
प्रेम भरी मीठी बोली से गगन को सजाया
अश्वारोही दिवाकर गगन पथ चढ़ आया
अली कली प्रस्फुटित पुष्पित तडाग री
अंधियारी रतिया बीती, जाग री ।।
उठ जाग ,गागर भर लाई ये भोर
खग मृग मुदित हो कर रहे हैं शोर
नवदिवस पुलकित मन की खींचे हैं डोर
गुंजित हुआ चहुँओर मन-राग री
अंधियारी रतिया बीती, जाग री !!
मधुर मदिर मन हुलसाए मलयज पवन
सुन्दर सृजन सलज्ज नयन अलकावली सघन
रंग-बिरंगे पुष्प प्रस्फुटित अनेकानेक बगियन
अब धर अधरो पर मुस्कान री ।।
अंधियारी रतिया बीती, जाग री ।।
राग रागिनी गूंजते, घंटा ध्वनि बाजत
आरती मधुर संगीत दीप सुंदर साजत
लालिमा लालित्य ललित जग जागत
उठ नयनपट खोल बुझते चिराग री ।।
अंधियारी रतिया बीती , जाग री ।।

---- विजयलक्ष्मी



खोई है हिन्दी की बिंदी ,चमक अपनों ने चुराई है
अजब आदत पड़ी अंग्रेजी की जो गैर की लुगाई है ।।
बहुत चर्चे चले घर घर अब आजाद कर भी दो
गैरों के स्वागत की कीमत अपनी जान से चुकाई है ।।
नहीं विश्वास गर तुमको तो फिर तलाक ही देदो 
यूँभी कैदियों सी हालत है जिससे हुई जगहंसाई है ।।
है मरणासन्न अवस्था में इसे इमेरजैंसी में भेजो
एक दिन की दुल्हन की आज रस्म मुंह दिखाई है ।।
----- विजयलक्ष्मी


हिंदी दिवस की तैयारी हो चुकी है 
हिंदी को मेकअप के लिए भेजा जा रहा है 
आज की रात उसे दुल्हन सा सजाना है 
क्यूंकि कल मुहं दिखाई की रस्म अदायगी है 
जी हाँ , मजाक नहीं है ये ,,, आज का सवाल ही यही है 

हिंदी को उसके आखिरी मुकाम तक पहुंचाना है
साहेब अंग्रेजी में गुर्रायेंगे ,,
हिंदी की शान में कसीदे पढकर सुनायेंगे
बेचारी माँ ,, को कैद किया है चार दिवारी में ,,
अंग्रेजन आंटी के साथ मेलोडी गुनगुनायेंगे
हे प्रभु को भूल ओ माय गॉड टर्रायेगें
कुछ नाजुक मिजाज या मेरे मौला गुहार लगायेंगे
कुल मिलाकर कैद माँ को छुडवाने का बेदम नाटक रचाएंगे
जय बोलेंगे और बुलवायेंगे ,,
एक कागज पर मीटिंग का एजेंडा सेट होगा ...
बराबर की टेबल पर पेट-पूजा का वेट होगा ,,
अजी छोडिये ..माँ का क्या है पड़ी रहेगी एक कोने में जाएगी भी कहाँ
मासी भाग गयी तो इज्जत का फलूदा बन जायेगा,,
कौन से थाने किस थानेदार को रिपोर्ट कराएगा
या आखिरी वक्त न्याय के लिए कोर्ट तक पहुंचाएगा
ये तो बताओ अंग्रेजी ट्यूशन अरे नहीं कोई हिंदी पढ़ायेगा
या तुलसी की चौपाई में हमेशा ही नारी को पिटवाएगा
एक दिन अपने भीतर भी झाँक लेना ..
इससे अलग मुझे कुछ नहीं कहना ,,
बोलो या न बोलो तुम जानो ..
मगर सुनो .. अपने संस्कार को तो मानो .
जो आज तुम कर रहे हो
उसका भुगतान तुम ही भरोगे ..
लाडले को जो पढ़ा रहे हो तैयार रहो तुम ही भरोगे
|| -------- विजयलक्ष्मी

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